अपराध क्‍या होता |What is Crime

 अपराध की प्रस्‍तावना या शुरूआत–

हमारे देश भारत में समस्‍त प्रकार धर्म, जाति, भाषाओ के व्‍यक्ति मिलकर रहते है, इसी कारण हमारे देश को अनेकता मे एकता का प्रतीक माना जाता है। भारत ऐसा देश है जिसमें वर्ण व्‍यवस्‍था पूर्णत:  विघमान है, धार्मिक,जातिगत, सामाजिक एवं आर्थित व्‍यवस्‍था का मुख्‍य रूप से समावेश है। हमारे देश में एक स्‍थान से दूसरे स्‍थान पहुचने पर भाषा भी बदल जाती है, लोगो के रग रूप आकार आदि समस्‍त प्रकार के बदलाव भारत देश में देखने को मिलते है। ऐसी विषम परिस्थिति में भारत जाति के आधार पर, धर्म के आधार पर, भाषाओ के आधार पर एवं अर्थिक रूप से मजबूत एवं कमजोर वर्ग में बट कर रह गया है, ऐसे आज के समय से नही है वल्कि प्राचीन समय से है, जब से आदिमानव निवास करते थे, प्राचीनकाल से ही प्रचलन में जो नियम और कानून एक सामाजिक संगठन के लिये बनाये गये है आज भी उन नियमों कानूनों के आधार पर सामाजिक संगठन उनका पालन करते आ रहे है।

हमारा भारत देश प्राचीन काल से ही अनेको काविलो/ संगठनो में बटा हुआ है, जिनके संचालन हेतु बहुत से नियमों कानूनो का बनाया गया है, उनके पालन कराने हेतु एक प्रधान की व्‍यवस्‍था की गयी है, जिसे प्रधान या मुखिया के नाम से जाना जाता है। कविले से संचालन हेतु जिन नियमों कानूनो को बनाया गया है अगर कोई समस्‍य उन का पालन नही करता है तो उसके लिये दण्‍ड का प्रावधान भी है, दण्‍ड आर्थिक, शारिरिक को भी हो सकता है।

दिन प्रतिदिन जनसंख्‍या बढती गयी, समूह कबिले में तबदील हुये कविले मुहल्‍ले और मुहल्‍ले गांव में एवं गांव शहर सब मिलकार वर्तमान समय में आज भारत एक देश बन गया।

सामाजिक सगठन छोटे थे तो अपराध करने वाले भी कम थे एवं  नियम कानूनो का पालन आसानी से करवाया जाता था, दण्‍ड का प्रावधान भी सीमित था। लेकिन जैसे जैसे जनसंख्‍या में विस्‍तार हुआ अपराध भी बढने लगे।

जैसे – आपसमें सामान की चोरी करना, आपस में लडाई करना, एक दूसरे को आवेश में आकर जान से मारना, साल भर में एकत्रित किये हुये धन को छीन लेना, स्‍त्रियों के प्रति दुरव्‍यवहार करना, महिलाओ का यौन शोषण करना आदि समस्‍त प्रकार के कृत्‍य हमारी समाज में विघमान हो गये जिनके लिये अनेको दण्‍ड का प्रावधान किया गया, जिससे समाज के व्‍यक्तियों के द्वारा इस प्रकार के कृत्‍यों को न किया जावे। जिसमें धन के रूप में दण्‍ड, समाज से उस व्‍यक्ति का वहिस्‍कार आदि।   

अपराध क्या है?

अपराध वह कहलाता है जिसमें किसी व्‍यक्ति स‍मूह के प्रति कोई भी कृत्‍य स्‍वंय या दो या दो से अधिक व्‍यक्तियों के द्वारा दुराशय से कारित किया गया हो जिसमें व्‍यक्ति स‍मूह को आर्थिक शारिरिक एवं मानसिक क्षति का सामना करना पडे ऐसे कार्य को अपराध की श्रेणी में रखा जाता है एवं अपराध एक जानबूझकर किया गया कृत्‍य है जो कि शारीरिक या मानसिंक क्षति, संपत्ति की क्षति या हानि का कारण बनता है, और विधि के विरूद्ध है। उसे अपराध कहते है।

अपराध वह कहलाता है जिसमे किसी निषेध कार्य को किया जाता है जानबूज करयह जानते हुये कारित करना कि यह एक निषेध एवं विधि विरूद्ध कार्य है। किसी ऐसे कार्य को कारित करना जो जानबूज के किसी व्‍यक्ति को क्षतिकारित करने हेतु किया जाता हैजिसमें किसी व्‍यक्ति को शारिरिक एवं आर्थिक क्षति होती है,  उसे अपराध कहा जाता है।


सरल शब्‍दों मे – 

 किसी ऐसे कार्य को करना जिसमें किसी व्‍यक्ति को शारिरिक,मानसिक एवं आर्थिक क्षति का सामना करना पडेगायह जानते हुये उस कार्य को करनाजो कि विधि विरूद्ध हो उसे अपराध कहते है।


कुछ विधिवेदताओ के द्वारा दी गई अपराध के लिये  परिभाषाये

(Definitions for offense given by some jurists)


कीटन के अनुसार – ‘ अपराध कोई भी अवांछनीय कार्य है जिसे राज्‍य दण्‍ड संहिता आरोपित करने के लिये कार्यवही आरम्‍भ का सबसे उपयुक्‍त ढंग से परिशुध्‍द करता हैन कि क्षतिग्रस्‍त व्‍सक्ति के स्‍वविवेक पर उपचार छोडकर देता है।

टेरेन्‍स मारिस के अनुसार – ’ अपराध वह है जिस कार्य को समाज आपराधिक विधि के अतिक्रमण के रूप मे स्‍थापित कर अपराध कहे। विधि के बिना अपराध कदापि नही हो सकता यघपि रोष हो सकता है जिसकी किये जाने के अधिनियम मे होती है।


अपराध के कारण

सामाजिक जीवन यापन करने वाले व्‍यक्ति में अनेको मन की इच्‍छाये होती है, जिनको पूरा करने के लिये मनुष्‍य किसी भी हद तक जा सकता है, जिससे उसकी इच्‍छाओं की पूर्ति हो सके एवं उन सुविधाओ का सुख प्राप्‍त कर सके। जिस के मन में गलत इच्‍छाये जिस दिन पैदा हो जाती है ( किसी पराई स्‍त्री के साथ संभोग करना, किसी अन्‍य व्‍यक्ति की किसी चीज को अच्‍छा लगना, किसी की कोई बात गलत लगना आदि।) उनको पाने के लिये दो तरीके होते है एक सही रास्‍ता और दूसरा गलत रास्‍ता कुछ चीजे ऐसी होती है जिनको सही तरीके से नही पाया जा सकता है इसलिये व्‍यक्ति गलत रास्‍ता चुनता है जैसे ही गलत रास्‍ता चुनता है व्‍यक्ति अपराध के लिये प्रथम कदम बढाता है यही से अपराध की शुरूआत होती है।


व्‍यवहारिक रूप से अपराध निम्‍न कारणों के कारण घटित होते –


1.    आर्थिक कमजोरी अर्थात पैसे की कमी की कारण
2.     शारिरिक विकारो के कारण
3.    स्‍वयं के लिये अच्‍छा रहन सहन के प्रति प्रवल इच्‍छा होने के कारण
4.    अच्‍छे मनोरंजन के साधनों की लालसा के कारण
5.    विडियों, चलचित्रों के द्वारा मन में अनेको विकार आने पर
6.    मानसिक कारणों के कारण


अपराध को कारित करना

अपराध ऐसे कृत्‍य है जिसको व्‍यक्ति स्‍वयं या दो या दो अधिक व्‍यक्ति मिलकर करता है एवं व्‍यक्ति अपने किसी प्रतिनिधि के माध्‍यम से भी किसी कार्य को कारित करा सकता है जो कि विधि के विरूद्ध है। वर्तमान समय में व्‍यक्ति ऐसे लोगो के द्वारा भी किसी कृत्‍य को करावाते है, जिनको भारतीय संविधान के तहत दण्‍ड का प्रावधान नही है, जिससे उनके प्रति किसी भी प्रकार का अपराध दाखिल न हो।

भारतीय संविधान एवं भारतीय दण्‍ड सहिंता में इतनी ताकत है कोई भी व्‍यक्ति अपराध कारित करने के उपरांत बच नही सकता है।



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