What is Indian Penal Code (IPC) ? | भारतीय दण्ड संहिता क्या है?
हमारे देश भारत में न्याय व्यवस्था बनाये रखने के लिये, प्रत्येक देश के नागरिको को स्वतन्त्रतापूर्वक, बिना किसी भय/डर के समाज में जीवन यापन करने के लिये कुछ नियमों एवं कानूनो की आवश्यकता पडती है, उन समस्त नियमों एवं कानूनो को भारत देश में पालन करने हेतु भारतीय दण्ड सहिता-1860 {Indian Penal Code-1860} ipc नामक संहिता का निर्माण किया गया।
भारत देश में संहिता –
प्रत्येक वर्ग/समूह
को सुव्यवस्थित तराको से संचालित करने हेतु वहुत से नियम/कानूनो का पालन करना पडता
है, जिससे प्रत्येक वर्ग/समूह सुचारू रूप
से संचालित होता है, उन नियमों/कानूनो रूढि-प्रथाओ को
नाम से हम जानते है, जिनके आधार पर भारत देश के प्रत्येक
वर्ग/समूह के व्यक्ति अपना जीवनयापन करते
है, अगर मसाज का कोई व्यक्ति सामाजिक नियमो
का तोडता है या पालन नही करना है तो समाज के मुखिया के द्वारा उसे दण्ड दिया जाता
है, उस दण्ड के डर से प्रत्येक वर्ग/समूह
के व्यक्ति अपने अपने कर्तव्यों का भली भांति निर्वाहन करते है और गलती करने से डरते है।
जिस प्रकार
समाज के सुव्यवस्थित तरीको से संचालित करने हेतु नियमों/कानूनो की आवश्यकता पडती
है, ठीक उसी प्रकार एक देश में न्याय एवं
कानून व्यवस्था को बनाये रखने हेतु बहुत से नियम और कानूनो की आवश्यकता पडती है।
उन समस्त नियम कानूनो को जिस संहिता के अन्दर समाहित किया गया है, उस
संहिता को भारत में भारतीय दण्ड प्रक्रिया संहिता-1860 के नाम से जाना जाता है। भारत
में 06 अक्टूबर सन् 1860 को गवर्नर-जनरल ने
भारतीय दण्ड संहिता की अनुमति प्रदान की गयी है। जिसमे प्रत्येक गलती हेतु शारीरिक
एवं आर्थिक दण्ड का प्रावधान है, जिससे समस्त भारत देश का संचालन
सही तरीके से किया जाता है, इसी संहिता से भारत के जो तीन आधार स्तम्भ है (विधायिका, कार्यपालिका
एवं न्यायपालिका) उनको सुव्यवस्थित तरीसे संचालित करने हेतु भारतीय दण्ड प्रक्रिया
संहिता का उपयोग किया जाता है।
अध्याय/धाराये-
सम्पूर्ण भारतीय दण्ड संहिता- 1860 को अधिनियम संख्या 45 है भारत में 06 अक्टूबर सन् 1860 को लागू किया गया है, जिसमें कुल 23 अध्याय है, जिसमें 511 धाराये है।
अपराध
–
सरल शब्दों मे –
किसी ऐसे कार्य को करना जिसमें किसी व्यक्ति को शारिरिक,मानसिक
एवं आर्थिक क्षति का सामना करना पडेगा,
यह जानते हुये उस कार्य
को करना, जो कि विधि विरूद्ध हो उसे अपराध
कहते है।
कुछ विधिवेदताओ
के द्वारा दी गई अपराध के लिये परिभाषाये
(Definitions
for offense given by some jurists)
कीटन के अनुसार
– ‘’ अपराध कोई भी अवांछनीय कार्य है जिसे
राज्य दण्ड संहिता आरोपित करने के लिये कार्यवही आरम्भ का सबसे उपयुक्त ढंग से
परिशुध्द करता है, न कि क्षतिग्रस्त व्सक्ति के
स्वविवेक पर उपचार छोडकर देता है।‘’
टेरेन्स मारिस
के अनुसार – ‘’ अपराध वह है जिस कार्य को समाज
आपराधिक विधि के अतिक्रमण के रूप मे स्थापित कर अपराध कहे। विधि के बिना अपराध कदापि
नही हो सकता यघपि रोष हो सकता है जिसकी किये जाने के अधिनियम मे होती है।‘’
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